सूर्यपुत्र कर्ण
महाभारत का युद्ध कौरवो और पांडवों के बीच हुआ एक सामान्य युद्ध नही था अपितु युगों युगों तक धर्म की अधर्म पर जीत का प्रतीक था। इस युद्ध मे अनेको वीर योद्धाओ ने प्रतिभाग किया और कई वीरगति को प्राप्त हुए। अनेको बार कूटनीति तथा राजनीति दोनों का ही परिचय न्याय तथा अन्याय दोनों ही प्रसंगों में देखने को मिलता है। श्रीमद्भगवद्गीता जो की प्रत्येक काल खंड और प्रत्येक व्यक्ति के लिए अमृत ज्ञान सिद्ध हुई है, वो इसी युद्ध के दौरान भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान है। इस युद्ध में सम्मिलित अनेको वीर योद्धाओ में एक योद्धा ऐसा भी था जिसे नियति ने रणभूमि में आने पर विवश किया था, जिसे जन्म से ही तिरस्कार और अपमान का सामना करना पड़ा, जिसका वह तनिक भी हकदारी नही था। ये प्रस्तुत पंक्तियाँ उस महावीर योद्धा सूर्यपुत्र कर्ण को समर्पित....
चल रही तमस की आंधी है, अधर्म नहीं कोई बाकी है |
पर जब भी मन सकुचाता है, या कोई धर्म बिसराता है
जब लगे जीवन महाभारत सा, मुझे कर्ण याद आ जाता है |
जाने तप कौन किया होगा, या अद्भुत कृत्य किया होगा
महादानी वीर महान बने, वो सूर्यपुत्र विद्वान बने
न कुरुक्षेत्र में उन जैसा, न तीनो लोक में उन जैसा
अरे जिसे हराने इंद्र स्वयं, रख आए रूप छली जैसा |
वो राजवंश का बालक था, पर सूतपुत्र बन कष्ट सहा
वो महलों का हकदारी था, पर वर्णभेद अपमान सहा
वो एक दुदमुहां बच्चा था, जब कुंती ने उसको बहा दिया
था ज्येष्ठ पांडवों का लेकिन, नियति ने शत्रु बना दिया |
द्रोण राजमहलों के थे, वो ज्ञान वहीं बतलाते थे
वो सूतपुत्र था जिज्ञासु, जिसे विद्या नहीं सिखाते थे
पर ज्ञान की प्यास बुझाने को, जब ब्राह्मण वंशी भेष लिया
सच्चाई के खुल जाने पर, तब परशुराम ने श्राप दिया |
तू शूद्रपुत्र नीचे कुल का, कहकर सबने अपमान किया
तब दुर्योधन ने गले लगाकर, राजतिलक का मान दिया
था मित्र बड़ा सच्चा वो भी, संकट में साथ निभाया था
कि कुरुक्षेत्र में कर्ण स्वयं, भगवान से लड़ने आया था
वो विपदाओं के साथी थे, न कष्टों से घबराते थे
अर्जुन ने तीर जड़ा छल से, वो तब भी धर्म निभाते थे
हो गया सुन्न ब्रह्मांड अखिल, कुंती का छठवां लाल गिरा
वो पौरुष बड़ा प्रतापी था, अरिदल ने भी स्वीकार किया |
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