जौहर


जौहर 


 सूरज सा तेज चमकता था, सति सा सातित्व दमकता था

वो विश्व सुंदरी रुपवती, उनसे मेवाड़ महकता था

माँ सीता का सीतत्व थीं वो, माँ काली का अवतार भी थीं 

मेवाड़ धरा की शान थीं वो, और रतन सिंह के प्राण भी थीं


उनके आगे आकाश विवश, सुंदरता मे ब्रह्मांड विवश
उनके बलिदान से तपी हुई, ये भारत भूमि महान विवश
यूँ तो मेवाड़ की रानी थीं, वो एक वीर क्षत्राणी थीं
जौहर की आग मे जलने को, तैयार पद्मिनी रानी थीं

तो बात शुरु सुंदरता से, जिस पर कुकुर था ललचाया
मेवाड़ धरा की शान पे जब, खिलजी का पापी मन आया
खिलजी का माथा सनक गया, आंखों मे मादक रस आया
दिल्ली से सेना साथ लिए, खिलजी मेवाड़ चला आया

मेवाड़ भूमि वीरों की है,
महाराणा से शेरों की है
बाप्पा रावल के वंशज है,
हर सैनिक खुद मे अंगद है


थीं सभा लगी, सब मौन यहाँ, फिर आया एक पैगाम वहाँ
पैगाम मे खिलजी मुस्काया, फिर अपनी मंशा पर आया

उसने रजपूती मांग ली, दीपक से ज्योति मांग ली
उसने मेवाड़ी वीरो से , उनकी महारानी मांग ली
सुन मांग सभी नक्षत्र डोले,फिर वीर कपित होकर बोले

वो जीभ नहीं रहने देंगे जिस जीभ से ऐसी बात हुई
वो हाथ धड़ों से खीचेंगे, जिसने मेवाड़ी आन छुई
वो पैर काट कर फेकेंगे, जिसने सीमाओं को लांघा
खिलजी के टुकड़े कर देंगे, जिसने महारानी को मांगा

रानी पद्मिनी थीं सकुचाई, मन ही मन मे थीं मुरझाई
मेवाड़ खड़ा हो संकट मे, ऐसी सुंदरता क्यों पाई
वो अंतर्मन मे सोच रहीं, फिर खुद को खुद ही कोस रहीं
एक झलक मेरी या वीर कई, थीं परिणामो को सोच रही

पर समय जरा विपरीत हुआ, खिलजी ने छुपके वार किया
कैद हो गए रतन सिंह, उनके घोड़े को काट दिया
राजा के बंदी बनने पर, शाही सिंघासन डोल गया
मानो कि मेवाड़ी दल में, कोई शोक संदेशा बोल गया

थी विपत बड़ी, अब धैर्य कहाँ
बिन रतन सिंह, मेवाड़ कहाँ
इतने में रानी बोल पड़ी, क्या बचा नही अब वीर कोई
क्या राजपूत सब मूर्छित हैं, वीरों बिन धरती दूषित है
क्या मैं ही खुद प्रस्थान करूं, मां काली जैसा नाश करूं
खिलजी जैसे श्रृंगाल बहुत, देखे मैन भी काल बहुत
मैं राज रतन को लाऊंगी, खुद नारी धर्म निभाऊंगी..

फिर वीरों ने हुंकार भरी, गोरा बादल ने बात कही
मां धैर्य धरो बस क्षण भर का, तुम मान हमारे मस्तक का
शोणित से धरा भिगोएँगे, खिलजी को ऐसा धोएंगे
रजपूती शान दिखा देंगे, मिट कर भी आन बचा लेंगे

राजा आजाद कराने को, निज गौरव वापस लाने को
डोलों में वीर थे भरे हुए, खिलजी को कच्चा खाने को
था एक तरफ खिलजी का मन, जो मन ही मन में मुस्काया
पर भनक जरा भी लगी नहीं, डोलों में काल चला आया

फिर तारे नभ से टूट पड़े, वो दबे बवंडर छूट पड़े
डोलों से वीर निकल करके, भूखे शेरों से टूट पड़े
था विकट बड़ा ही दृश्य वहाँ, थी लाल धरा थे वीर जहाँ
छन छन तलवारे काट रहीं, कट गए शीश थे तीर जहां
थी धरा सुन्न थे देव खड़े, कुछ वीर खड़े कुछ मरे पड़े
गोरा और बादल लड़े पड़े, हो गया नाश सब खड़े खड़े

कट गए हाथ, तो शीश लड़े, कट गए शीश स्कन्ध लड़े
गोरा बादल क्या खूब लड़े, क्या खूब लड़े, क्या खूब लड़े

अम्बर ने धरती ढक डाली, वीरो ने भूमि रंग डाली
खुद राज रतन सिंह निकल पड़े, लेकर तलवारे और ढाली
सिर पर केसरिया बांधे थे, थी रणभेरी अंतिम वाली
सबके मुख से स्वरनाद हुआ, जय हो जय हो खप्परवाली

मानो तो युद्ध विकराल हुआ, पर संख्या बल से हार गए
सब वीर लिए निज प्राणों को, मेवाड़ की खातिर वार गए
खिलजी मानो भव पार हुआ, फल पाने को तैयार हुआ
दौड़ा दौड़ा वो इधर उधर, था रानी का वो महल जिधर

मां रानी ने सब समझ लिया, सब सखियों को आदेश दिया
छू सके मेवाड़ी इज़्ज़त को, उस कुकुर ने न जन्म लिया
हम नारी पतिव्रत धारी हैं, हम दुर्गा हम ही काली हैं
हां हम भारत की नारी हैं, न किसी की भी उपकारी हैं

फिर एक अंधेरा सा छाया, मानो बादल भी शरमाया
सब सखियाँ रानी संग हुई, मानो करुणामय पल आया
रानी ने अमृत भर डाला, भारत को पावन कर डाला
ले सभी युवतियां संग संग, पद्मिनी ने जौहर कर डाला

रजपूतों का उद्धार हुआ, मेवाड़ भी भव से पार हुआ
पद्मिनी के जौहर के आगे, वहशी खिलजी भी हार गया
हैं धन्य पद्मिनी धन्य धरा, था प्रेम बड़ा अमरत्व भरा
सबने संगमरमर को माना, थी प्रेम धरा मेवाड़ धरा

जिसने मजदूरों को मारा, उनके हाथों को कटवाया
न जाने कैसे प्रेम हुआ, जो ताजमहल था बनवाया
पर मैं मरता उस मिट्टी पर था जिसमे इतना प्रेम भरा
है धन्य धन्य मेवाड़ धरा, ये प्रेम धरा बलिदान धरा..

               

Comments

  1. यहाँ कविता मेवाड़ के योद्धाओ के लिए श्रंद्धाजलि के तौर पर होगी बहुत अच्छा ऐसे ही लिखते रहो

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